उत्तरकाशी -स्वामी लक्ष्मण दास अवधूत मेमोरियल ट्रस्ट की और से जलवायु परिवरतन एव धार्मिक असहिषुणता विषय पर गंगोत्री में सेमिनार का आयोजन किया गया ।
vi / o - देश के कही प्रदेशों से आये वैज्ञानिकों एव सादू संतों ने कहा की देश के अधिकतर हिस्सों में फरवरी के आखिर और मार्च में होली के तुरंत बाद मौसम के बुरी तरह से खराब होने और मूसलाधार बारिश ने हर किसी को हैरान कर दिया। मौसम विभाग भले ही इसका तकनीकी कारण वेस्टर्न डिस्टर्बेंस को बताए, लेकिन गहराई से गौर करने पर यही लगता है कि मौसम की इस उलटबांसी के लिए हम इंसान कहीं ज्यादा जिम्मेदार हैं। दुनियाभर में और उससे कहीं ज्यादा भारत में हम अपनी सुविधापरस्ती के लिए प्रकृति से लगातार खिलवाड़ करते रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र और दुनिया के बड़े-बड़े मंचों से पर्यावरण संरक्षण को लेकर नियमित रूप से जोरदार चिंता जताई जाती रही है, लेकिन ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने और उन्हें पाल-पोसकर बड़ा करने को लेकर सरकार और संस्थाएं उतनी सतर्क-सावधान कतई नहीं रही हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि जिस पौधे को धूमधाम से लगाया जाता है, कुछ दिन बाद उसकी सुध भी किसी को नहीं रहती और वह असमय ही मुरझा जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछले कुछ सालों से ग्लेशियर तेजी से पिघल कर समुद्रों का जल स्तर बढ़ा रहे हैं। जिसमे उत्तरकाशी का गंगोत्री ग्लेशियर भी है । इसकी वजह से अगले कुछ वर्षों में कुछ छोटे तटवर्ती देशों-इलाकों के पूरी तरह जलमग्न होने का खतरा पैदा हो गया है। यह ठीक है कि तकनीक हमारे जीवन को लगातार सुविधाजनक बना रही है, पर तकनीक को बढ़ावा देते समय हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि इससे पर्यावरण को नुकसान न हो। क्योंकि अगर पर्यावरण को क्षति पहुंचती है, तो उसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ता है। हमें स्वस्थ, सुखी रहना है, तो प्रकृति को समझना और उसके साथ संतुलन बनाकर चलने पर अमल करना होगा।